है अदब नही सवाल
जोश है नसोमे स्वार
आखोमे जिनके अंगार
ऐसे वीर बाजीराव
अश्वपे है वो सवार
हाथमे है ढाल बाण
रणदुर्गपे है निशान
हर रोम है वीरगान
चलती जब उनकी तलवार
सप्त सागर बनते है
जब करते वो प्रहार
भूगर्भतक हिलता है
केसरीकि गर्जना
संतोकी अर्चना
कृष्णकी योजनासॆ
बनते है बाजीराव
सहस्र रीति एक नीति
है श्रीमंत युद्धनिती
अति तीक्श्ण बुद्धिसे
पुर्णत्व उन्हे प्राप्त है
ऐसे अजिंक्य योद्धाको
करता केत है प्रणाम
दुश्मन डरसे जिन्हे
झुककर करते सलाम
ऐसे वीर बाजीराव
ऐसे वीर बाजीराव
- अचलेय
( मैं २०१२ )