Wednesday, 28 June 2017

रातकी राहो मे

मै और मेरी तनहाई
निकल पड़ते है कई दफा
ठंडी रातोमे, सर्द हवा मे
राह में बिखरी पथदिपोकी
पिली रोशनी में
आसमान में बिखरे तारोका
आनंद लूटते हुए
सडकोपे भोकते
श्वानोंसे सहमे हुए
अपने अकेले पनका
और इस निर्मानुष्य
पथ का मजा लेते हुए
अपने आपसे ही
जी भर बाते करते हुए
कही जलते हुए
अलाव को ढूंढते हुए
उस ठंडी रात में
हाथ सेकने के,
दिल खुश करने के मोह से
अपने अंदर के कवी को
जगाने के लिये
उस वीराने को, उस शांति को
अपने अंदर समाने के लिये
ज़माने को भुलाने के लिये
चिदानन्द के लिये
मैं और मेरी तनहाई
निकल पड़ते है
कई दफा रातोमे...
                     
                          ~ अचलेय

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