राहपे तू चल पड़ा है
खुदसेही तू लड़ पड़ा हैकौम ने कसी हुई जो
लौह की है श्रृंखला
हथौड़ी लेके आज मनुज
तुझको है वो तोडना
शंखनाद करले तू
दे चुनौती युद्ध की
कसदे ज़ीन अश्वपे
खड्ग अपने तेज कर
खुदको अब तू जान ले
खुदको सौप दे ईमान
भीतरी चिंगारियों को
अग्नि का स्वरूप दे
इसी धधकते अग्नि का
खुदको दे तू ईनाम
डर ही तेरा शत्रु है
वही तो आज दर पे है
रक्त स्वेद से पली
बाढ़ में कर रिपुदमन
ऐसी उँची उड़ान ले
विंध्य की नजर उठे
इतना तू विक्राल बन
अगस्त्य भी न पी सके
इतना तू मजबूत बन
काल ना जकड़ सके
इतना तू तेज बन
काल ना पकड़ सके
अभी लक्ष है अंधेरोमे
अपरिचित परिवेश में
ध्येय तो है धुंधला
समीप जा कर पाना है
– अचलेय
G R A N D !
ReplyDeleteI N D E E D
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