Monday, 18 December 2017

रिपुदमन

राहपे तू चल पड़ा है
खुदसेही तू लड़ पड़ा है
कौम ने कसी हुई जो
लौह की है श्रृंखला
हथौड़ी लेके आज मनुज
तुझको है वो तोडना
शंखनाद करले तू
दे चुनौती युद्ध की
कसदे ज़ीन अश्वपे
खड्ग अपने तेज कर
खुदको अब तू जान ले
खुदको सौप दे ईमान
भीतरी चिंगारियों को
अग्नि का स्वरूप दे
इसी धधकते अग्नि का
खुदको दे तू ईनाम
डर ही तेरा शत्रु है
वही तो आज दर पे है
रक्त स्वेद से पली
बाढ़ में कर रिपुदमन
ऐसी उँची उड़ान ले
विंध्य की नजर उठे
इतना तू विक्राल बन
अगस्त्य भी न पी सके
इतना तू मजबूत बन
काल ना जकड़ सके
इतना तू तेज बन
काल ना पकड़ सके
अभी लक्ष है अंधेरोमे
अपरिचित परिवेश में
ध्येय तो है धुंधला
समीप जा कर पाना है

                     – अचलेय

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