ये बात है उस रात की
जो सर्द थी, वीरान थी
बादलों का शतरंज था
ये चाँद था उलझा हुआ
जमने लगा मेरा लहू
सांस जखड़ी वाष्पने
थी छुपी करके शरारत
मुठ्ठी में मेरे हरारत
ठंड जिस चट्टान का
मैंने लिया था आसरा
सदियो तक होंगे बसे
आर्ष कालीन वीर वहा
वाकिफ किया अतीत से
उस धवल गुफा चित्र ने
समय के प्राबल्य का
अहसास तब था हो गया
बूंद ढले, जो दरार से
गूंज उठे, उस शांति में
था उस विशाल शिल्प का
ध्वनि नाद मैंने सुन लिया
आदिम के समय से
पांडवोके काल तक
भैस के शिकार से
तपस्वियों के सिद्धि तक
सर्वत्र साक्षी उसकी थी
सर्वज्ञानी वो शिला
जुगनुओं को तलाशते
मैं रातमें था चल पड़ा
हूँ निशाचर, था जगा
थी वो जगा भीमबेटका
~ अचलेय
( ९ अप्रेल २०१९ )
जो सर्द थी, वीरान थी
बादलों का शतरंज था
ये चाँद था उलझा हुआ
जमने लगा मेरा लहू
सांस जखड़ी वाष्पने
थी छुपी करके शरारत
मुठ्ठी में मेरे हरारत
ठंड जिस चट्टान का
मैंने लिया था आसरा
सदियो तक होंगे बसे
आर्ष कालीन वीर वहा
वाकिफ किया अतीत से
उस धवल गुफा चित्र ने
समय के प्राबल्य का
अहसास तब था हो गया
बूंद ढले, जो दरार से
गूंज उठे, उस शांति में
था उस विशाल शिल्प का
ध्वनि नाद मैंने सुन लिया
आदिम के समय से
पांडवोके काल तक
भैस के शिकार से
तपस्वियों के सिद्धि तक
सर्वत्र साक्षी उसकी थी
सर्वज्ञानी वो शिला
जुगनुओं को तलाशते
मैं रातमें था चल पड़ा
हूँ निशाचर, था जगा
थी वो जगा भीमबेटका
~ अचलेय
( ९ अप्रेल २०१९ )
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