Friday, 29 November 2019

गुमशुदा

मैं काल का श्रृंगार हूँ
मैं शोक जो वीभत्स हूँ
मैं काम का तेज हूँ
मैं भय हूँ अंधकार सा
जटिल से समाज में
मैं प्रीत का पुजारी हूँ
असत्य सत्य सही गलत
मैं नग्न एक दशा जो हूँ
मैं आदिम की भूख हूँ
गीदड़ों का झुंड हूँ
सबमे जो मौजूद हूँ
मृत्यु सा अटल हूँ मैं
मासिक धर्म में बहे
खून का मैं बून्द हूँ
शिशु का स्तनपान मैं
अग्नि से पवित्र हूँ
भीड़ से दूर हूँ
भीड़ में हूँ छुपा
इस डर के गुफामें मैं
हूँ अनंत काल से
अस्तित्व मेरा है मगर
पहचान है गुमशुदा

                     ~ अचलेय
                      ( ६ \ ११ \ १९ )


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