Monday, 29 May 2023

सावरकर

 धोम गोल एक बोल

धूम मिश्रित अग्निगोल

रंजीत रक्त, बूंद स्वेद

उष्ण खून झर झर झर..


युद्ध था समुद्र से

चीरता निकल गया

युद्ध था वेदना से

अगस्त्य सा निगल गया


अग्नि बरसाती स्याही से

अविरत लिखता गया

स्याही ना मिली थी जब 

तो कोयले से लिख लिया


धोम गोल एक बोल

धूम मिश्रित अग्निगोल

रंजीत रक्त, बूंद स्वेद

उष्ण खून झर झर झर..


तेरे शब्दों के घावों से

क्रांति का उठा तूफान

लाल लाल जख्म देख

खौलता उठा युवां


सहस्र पांडव लड़ पड़ा

देख पांचजन्य तेरे हाथ में 

और जली बड़ी चिता

अधम के वस्त्र की


धोम गोल एक बोल

धूम मिश्रित अग्निगोल

रंजीत रक्त, बूंद स्वेद

उष्ण खून झर झर झर..


~ अचलेय 



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