Saturday, 26 October 2024

किनारा

काळ हा दीपमाळ जपतो 

कंदिले झुलती नभी 

चांदण्या शोधी शशी

अन सांज ही झाली अशी


मीच माझी वाट बघण्या 

ठाकलो सागर किनारी 

हा किनारा हीच वाळू 

परतणारा हाच वारू


शांत लाटा उष्णश्या 

बिलगती माझ्या पदा 

गुह्य त्या सागर तळीचे 

येऊन सांगी मला


शांतता माझ्यातली मग 

हृदय स्पंदन ऐकवी 

सागराचे गीत चाले 

ताल ठोके अंतरी


रम्यश्या त्या ठिकाणी 

लांब कोणी दिसले मला

नजीक जाता आले कळूनी 

भेटीस आलो मी मला 


                       ~ अचलेय

Saturday, 5 October 2024

कहानी

 कागज़ की कश्ति पर 

भीगी जो स्याही थी

ओझल से लफ़ज़ोने 

खुदको मिटाया था


तैराक थी कश्ति

पानी में थी मस्ती

बारिश के बूंदों ने

बादल रुलाए थे


हम थे किनारे पे

खुदको संवारे थे

मुठ्ठी में कैद कर 

कितने तूफानों को


उस जालिमसी रात ने

चाँद भी निगला था

तारो को बादलों ने

यूंही उलझाया था


स्याही भी काली थी

रात भी काली थी

उसमें उकेरी वो 

कहानी भी काली थी


अब पूछो ना कुछ

मुझको कहानी तुम

कश्ति तो है डूबी

कर मटमैला पानी


~ अचलेय




शालिग्राम

 धोंडा ओबड धोबड  होतो गोल गुळगुळीत  परी नदीत बुडणे  आले पाहिजे नशिबी  नदीचा तो तळ  तेथे प्रवाह अथांग  ध्यान लागता धोंड्यास  होतो त्याचा शालि...