Tuesday, 9 April 2019

भीमबेटका

ये बात है उस रात की
जो सर्द थी, वीरान थी

बादलों का शतरंज था
ये चाँद था उलझा हुआ

जमने लगा मेरा लहू
सांस जखड़ी वाष्पने

थी छुपी करके शरारत
मुठ्ठी में मेरे हरारत

ठंड जिस चट्टान का
मैंने लिया था आसरा

सदियो तक होंगे बसे
आर्ष कालीन वीर वहा

वाकिफ किया अतीत से
उस धवल गुफा चित्र ने

समय के प्राबल्य का
अहसास तब था हो गया

बूंद ढले, जो दरार से
गूंज उठे, उस शांति में

था उस विशाल शिल्प का
ध्वनि नाद मैंने सुन लिया

आदिम के समय से
पांडवोके काल तक

भैस के शिकार से
तपस्वियों के सिद्धि तक

सर्वत्र साक्षी उसकी थी
सर्वज्ञानी वो शिला

जुगनुओं को तलाशते
 मैं रातमें था चल पड़ा

हूँ निशाचर, था जगा
थी वो जगा भीमबेटका


                                  ~ अचलेय
                                   ( ९ अप्रेल २०१९ )

Friday, 5 April 2019

नसीहत

ये नसीहत है मेरी उससे  जो मेरा कल है, जो शायद कामियाब है; के किसी नाकामियाब को कामयाबी के नुस्खे और मशवरे ना देना.
ये तो सिर्फ वक्त की बात है, कल तुझे भी क्या पता था कि ये 
'आज ' तेरे कदमोमे था..!!

                              ~ अचलेय

ये उम्मीदे

उम्मीदे बर्दाश्त नहीं होती है
उम्मीदों पर खरा उतरना नही आता है
ये अलग बात है कि,
कोई हमसे उम्मीद नही रखता
यही उम्मीद करता हु कि,
 कोई तो उम्मीद रखे हमसे..
लेकिन फिर उन्हें
उम्मीदे बर्दाश्त नहीं होती है

                                   ~ अचलेय


तराशे पल

कुछ पल ऐसे भी जी रहा हूँ
जो मेरी कहानी को तराश रहे है
सब्र अब इतना करना है के
उन तराशे हुए पलो की बोरी
अपने किताबो के पन्नो में
अच्छेसे बो पाऊ
क्योकि बोरी में वो पल
मैं छुपाने के लिए नही
बल्कि बचाने के लिए
रख रहा हूँ.

                     ~ अचलेय

शालिग्राम

 धोंडा ओबड धोबड  होतो गोल गुळगुळीत  परी नदीत बुडणे  आले पाहिजे नशिबी  नदीचा तो तळ  तेथे प्रवाह अथांग  ध्यान लागता धोंड्यास  होतो त्याचा शालि...